धान की फसल
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. विशाल
मेश्राम ने किसानो कृषि समसमायिकी सलाह दी है, उन्होने बताया कि वर्तमान में जिन
किसानों की धान की नर्सरी 20 से 25 दिन हो गई है वे मौसम को ध्यान में रखते हुए
धान की रोपाई करें पंक्ति से पंक्ति से दूरी 20 से.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 10
से.मी. रखे। उर्वरकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश और
20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। नत्रजन की आधी मात्रा
बुबाई या रोपाई के समय प्रयोग करे शेष आधी मात्रा को दो से तीन बार में 25-30 दिन एवं 50-55 दिन बाद प्रयोग करे तथा
फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुबाई या रोपाई के समय डालें। नील हरित शैवाल
एक पेकिट प्रति एकड़ का प्रयोग उन्ही खेतों में करें जहां पानी रहता हो। धान की
पौधशाला में यदि पौधों का रंग पीला पड़़ रहा है तो इसमें लोहे का तत्व की कमी हो
सकती है। पौधों यदि उपरी पत्तियां पीली और नीचे की हरी हो तो यह लोह तत्व की कमी
दर्शाता है। इसके लिये 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट 0.25 प्रतिशत चूने का घोल का
छिड़काव आसमान साफ होने पर करेें।
अल्पावधि (100 दिन)- जे. आर. 201, जे.आर.एच. 5, दन्तेश्वरी, सहभागी, जे.आर.एच.8, मध्यम अवधि (120 दिन)-
जे.आर.बी.-1, एम.टी.यू.-1010, अई.आर.-64, जे.आर.-206, जे.आर.-81 धान की
प्रजातियों की बोनी कर सकते हैं। भू एवं जल संरक्षण कार्य हेतु खेतों की मेड़बंदी
करें तथा खेत के मोघांे को बंद करें। नर्सरी वेड की सिंचाई करें, जहाॅं पर कम वर्षा हुई
है। धान के खेतों में दरारें पड़ने की स्थिति में सुविधानुसार सिंचाई करें।
धान यह वर्षा पर आधारित असिंचित फसल है। फसल की क्रान्तिक अवस्थायें
निम्नलिखित है और इन अवस्थाओं में फसल को सूखे से बचाना चाहिए। अंकुरण, कल्ले फूटना, बाले निकलना, बूटिंग एवं हेडिंग।
अन्तरःसस्य क्रियायें खेत में पानी जमाव की स्थिति में अन्तरसस्य क्रियाओं की
आवश्यकता नहीं होती। पानी जमाव न रहने की स्थिति में जहां पर नींदा का प्रकोप हो
वहां रोपाई के 25-45 दिन बाद निदाई करना चाहिए। वर्षा की कमी के कारण खेतों में
दरारें दिखने पर 15-20 दिन पहले बोई फसलों में सविधानुसार सिंचाई करें। एवं फसलों
को सूखे से बचाने हेतु पुरानी फसल (गेहॅू या चना) के अवशेषों से पलवार लगाएं। कतार
में बोई गई धान की फसल में यांत्रिक विधि से अंतः सस्य क्रियाये जैसे कुल्फा या हो
चलाकर मृदा नमी का संरक्षण तथा निंदा नियंत्रण करे। सिंचाई हेतु पानी का साधन होने
पर हल्की सिंचाई करंे।
निंदाई गुड़ाई कर खरपतवारों का नियंत्रणं -कम वर्षा के कारण धान में
खरपतवार निकलने की संभावना है। खेतों में आवश्यकतानुसार खरपतवार नियन्त्रण खरीफ की
फसलों में आवश्यकतानुसार निंदाई गुड़ाई कर खरपतवारों का नियंत्रण करें। यदि श्रमिक
उपलब्ध हो तो समय पर मैनुअल निदाई की जाए या उगने से पहले के खरपतवारनासी जैसे
पे्रटीलाक्लोर 500 मि.ली प्रति एकड़ या पाइरोजोसल्फ्यूरान 80 ग्राम प्रति एकड़ एवं
उगने के बाद के खरपतवारनाशी जैसे बिस्पीरिबिक सोडियम 100 मि.ली प्रति एकड़ का उपयोग
करना चाहिए।
जिन किसान भाईयो के यहाॅ रोपा लग चुका है वहाॅ भविष्य में धान
में पौधो से लेकर दाने बनने की अवस्था तक
करपा झुलसा रोग आता है। इस रोग का प्रभाव मुख्यतः धान की पत्तियो, तने की गांठे एवं बाॅली
पर आॅख या नाव के आकार के भूरे, कत्थे धब्बे बनते है इस रोग की
रोकथाम हेतु ट्राई साइकलाजोल 120 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे। कुुछ
क्षेत्रो मे धान मे जिंक की कमी से खैरा रोग बहुतायत मे दिखाई देता है जिसमे धान
की पत्तियो मे नुकीले हिस्से से पीलापन लिये हुये पैरे के समान सूखने लग जाते है
इस रोग की रोकथाम हेतु 12 प्रतिशत चिलेटेड जिंक 150 ग्राम अथवा 21 प्रतिशत वाला 10
किलो ग्राम या 33 प्रतिशत वाला मोनोहाईड्रेट जिंक 2 किलो ग्राम मे से कोई भी एक का
प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे। कीट वर्तमान मे मण्डला जिले में धान की फसल 135
हजार हेक्टेयर मे लगी हुई है जिसमें कहीं-कहीं गभोट की अवस्था में है। पिछले वर्ष
धान की फसल मे झूठा कंडवा या आभासी कंडवा या फाल्स स्मट रोग की समस्या बहुतायत मे
देखी गई थी जिससे धान की गुणवत्ता और धान की फसल में गुणवत्ता एवं उत्पादन मे भारी
कमी आती है यह रोग धान की फसल मे फूल वाली अवस्था में रूक-रूक कर हो रही बारिश एवं
वातावरण में कुछ आर्दता मे 90 प्रतिशत से अधिक की स्थिति में उग्र हो जाता है उस
समय इसका नियंत्रित कर पाना अत्यन्त मुश्किल होता है। अतः इस रोग से बचाव के लिए
जैसे ही धान की फसल मे लगभग 50 प्रतिशत तक बालियां आ जाएं उस अवस्था पर
एजोक्सीस्ट्राबीन $ डाइफेनोकोनाजोल 200 मिली लीटर अथवा प्रोपीकोनाजोल 200
मिली लीटर अथवा कापर आक्सीक्लोराइड 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 150 लीटर पानी के
साथ छिड़काव करे।
अरहर:
जल्दी पकने वाली किस्में- आई.सी.पी.एल. 87, पूसा 33, मध्यम अवधि-
आई.सी.पी.एल. 88039, आशा, आई.सी.पी.एल. 2671, जे.ए. 4, जे.के.एम. 7, जे.के.एम. 189. की बोनी
करें। रोपण विधि से अरहर की रोपणी तैयार करें । सूखें खेतों में खेत की तैयारी
उपरांत बोआई करंे। बुवाई से पहले बीजोंपचार करें। बीजों की बुवाई 4 इंच वर्षा
उपरांत करें। भूमि में दरारें पड़ने से पहले आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
फलदार वृक्षः
नये फल उद्यान में कददूवर्गीय सब्जी को अंतर्वतीय फसल के रूप में
बुवाई करें। वर्षा ऋतु मंे नए फलदार
वृक्षों को गढढ़ों में लगाएॅं। प्याज की नर्सरी तैयार करने के लिए उची उठी
हुई क्यारियों पर गोबर की खाद बिछाकर टाइकोडर्मा व स्यूडोमोनास 10 किलो बीज दर से
उपचारित कर बीज की बोनी करेे। खडी फसल टमाटर भटा, भिण्डी, सेम, बरबटी आदि पर बायो
फर्टीसोल 1 ली./एकड 200 ली पानी में घोलकर स्प्रे करने से बववार अच्छी होती है।
सब्जियों के इल्ली के प्रकोप होने पर वेवेरिया बेसियाना 1 ली./है. 500 लीटर पानी
में मिलाकर/है की दर से स्प्रे करना लाभप्रदय है। लगे हुए पौधों की देख-रेख करे।
सूखा रोग से बचाव हेतु टाइकोडर्मा 20 ग्राम व 1 किग्राम गोवर की खाद में मिलाकर
प्रति पौधे की दर से डाले इस हेतु 100 किग्राम गोबर की सडी हुई खाद में 2 लीटर
डाइकोडर्मा मिला कर किग्रा लीटर पानी की दर से घोल कर दो बार स्प्रे करे।
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कोदो, कुटकी रागी आदि लघुधान्य फसलों की
बोनी इस माह कर सकते हैं बोनी के पूर्व बीज में जैविक उर्वक एजोटावेक्टर या एजोस्प्रेलम
एक पैकेट प्रति एकड उपयोग करे। अगस्त के प्रथम सप्ताह व उसके बाद रामतिल की बोनी
करे।
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