नर्मदा की महिमा और गरिमा को समझने की जरूरत - आचार्य कौशिक जी महाराज - newswitnessindia

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Thursday, March 9, 2023

नर्मदा की महिमा और गरिमा को समझने की जरूरत - आचार्य कौशिक जी महाराज

मण्डला। नर्मदा महात्म की कथा सुनाते हुये आचार्य कौशिक जी महाराज ने कहा कि समूचे जगत के कल्याण के लिये पुण्य सलिला मॉ नर्मदा का अवतरण हुआ है। नर्मदा जल के आचमन से चारों वेदों को पढ़ने के बरावर पुण्य मिलता है। नर्मदा महात्म सुनने से परिक्रमा का पुण्य अर्जित होता है। नर्मदा जी महिमा और गरिमा को समझने की आवश्यकता है। भगवान शंकर से देह से उत्पन्न होने वाली नर्मदा जी को जग के कल्याण के लिये वरदान प्राप्त है। इनकी शरण में आने वाले पापियों को भी सद्गति मिलती है। शास्त्रों में नर्मदा जी को दक्षिण गंगा नाम से संबोधित किया गया है। 

 

कौशिक जी महाराज ने कहा कि नर्मदा जी दुनिया में बहने वाली पहली नदी हैं जिनका 600 करोड़ वर्ष पूर्व धरती पर अवतरण हुआ था। शास्त्रों में नर्मदा जी के 24 मुखों का उल्लेख है। यह दुनिया की एक मात्र नदी है जिनकी परिक्रमा होती है। भाग्यशाली होते है वे मनुष्य जिन्हें नर्मदा जी की परिक्रमा का सौभाग्य मिलता है। नर्मदा परिक्रमा से 7 जन्मों के पापों का नाश होता है। एक रात्रि रेवा तट पर विश्राम करने पर शिवरात्रि के समान पुण्य मिलता है। गंगा भी वर्ष में एक बार स्वयं नर्मदा जी में स्नान करने आतीं हैं। सनातनियों को कैलाश मान सरोवर का दर्शन जरूर करना चाहिये जहां साक्षात भगवान शंकर विराजमान हैं। उन्होंने प्रवचन में नर्मदा जी के 15 नामों को वर्णन करते हुये उनकी महिमा भी बताई। कौशिक जी महाराज ने कहा कि नर्मदा तट प्रचुर मात्रा में औषधियां मिलतीं हैं। लगातार 6 माह तक नर्मदा स्नान करने से क्षय रोग समाप्त होता है। नर्मदा तट पर 67 करोड तीर्थ बसे हैं। आचार्यश्री ने कहा कि जो शिष्यों का गौरव बढ़ाये वही गुरू है और जो गुरूओं के अनुशासन में रहे वही शिष्य है। जिनका वर्तमान सहीं है उनका आने वाला कल स्वयं संभल जाता है। संस्कारों से बड़ी कोई पूंजी नहीं होती। सत्कार सेलीब्रेशन में चल रहे 3 दिवसीय इस आयोजन का समापन 11 मार्च को होगा। 

 

मार्कण्डेय ऋषि को अपने हाथों से भोजन कराती हैं नर्मदा 

आचार्य कौशिक जी महाराज ने कहा कि नर्मदा जल से सिद्धी मिलती है। मार्कण्डेय, पुलस्त्य, जमदग्नि, आदि शंकराचार्य, मंडन मिश्र जैस ऋषि ने नर्मदा तट पर तप किया है। शास्त्रों के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि नर्मदा तट पर  लगातार तपस्या कर रहे हैं जिनकी 28 वर्षों में एक वार मॉ नर्मदा स्वयं भोजन करातीं हैं। नर्मदा तट पर विष्णु सहस्त्रनाम सिद्ध हो जाते हैं। नर्मदा स्नान करने वालों को अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल मिलता है। मण्डला जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि यहां की धरती और प्रकृति अद्वितीय है। संत लोमस ने मण्डला संगम में तप किया था जिन्हें मॉ नर्मदा ने साक्षात दर्शन दिये थे। 

 

सीता शांति का प्रतीक है

नर्मदा महात्म के दौरान आचार्य कौशिक जी महाराज ने अनेक दृष्टांतों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सीता शांति का प्रतीत है। जहां परिश्रम होता है वहीं शांति होती है। राजा जनक ने सपत्निक हल चलाकर परिश्रम किया था जिसके परिणाम स्वरूप सीता जी प्राप्त हुईं थीं। सीता स्वयंवर की चर्चा करते हुये उन्होंने कहा कि जो अभिमान त्यागते हैं उन्हें शांति मिलती है। रावण मोह है जो शांति रूपी सीता का हरण करता है। बुरे कर्मों का अंत निश्चित है।

 




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