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Friday, May 10, 2024

कोविड से ज्यादा डरावना है, वेक्सिन पर विवाद

इस समय कोविड वेक्सिन को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी को कटघरे में विपक्ष खड़ा कर रहा है। विवाद इतना बढ़ गया है कि लोगों के मन में डर बैठने लगा है। वे किसी भी बीमारी से जूझ रहे हों लेकिन उन्हें लग रहा है कि कोविद वेक्सिन सारी बीमारी की जड़ है। सोशल मीडिया में जिस तरह से वेक्सिन को लेकर अधकचरा ज्ञान बांटा जा रहा है, वह बेहद खतरनाक हो चला है। यह विवाद एक किस्म का चुनावी विवाद है जिसमें अकारण पीएम मोदी की इमेज को डेंट करने की कोशिश की जा रही है। मोदी की छवि इस समय विश्व नेता की है और अभी उनके मुकाबले में कोई दूसरा नहीं है।


कोविड वेक्सिन को लेकर जो बवाल काटा जा रहा है, वह आम आदमी की चिंता नहीं बल्कि एक वैश्विक साजिश की बू आती दिख रही है। आम आदमी को यह जरूर नहीं मालूम की बड़ी कंपनियां खुद के लाभ के लिए ऐसी साजिश रचती आ रही हैं। कई ऐसी बीमारियां जो है ही नही, उसके बारे में फैलाया जाता है। डर का व्यापार किया जाता है। कुछ कुछ मामला इस बार भी ऐसा ही लग रहा है। पहले कोविड वेक्सिन का कथित दुष्परिणाम के बारे में डर पैदा किया जाए और भी इससे बचाव के लिए नई दवा बाजार में लाई जाए। इन दवाओं को बेचकर अरबों खरबों कमाया जा सके। यह बात सर्वविदित है कि भारत इतना बड़ा बाज़ार है कि यहां व्यापार करना लाभ का धंधा है।


वैश्विक कम्पनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और बाजार को अपने कब्जे में रखने के लिए पहले डर का माहौल बनाया जाता है। और इसके बाद डर को दवा के रूप में या अन्य उपभोक्ता वस्तुओं को बेचा जाता है। पिछले कुछ सालों  में शुगर और ब्लडप्रेशर के पेशेंट के साथ अनेक मानसिक बीमारियां युवावर्ग में देखने को मिली है। स्वस्थ्य भारत के बीमार युवा चिंता के केन्द्र में है लेकिन नित नई दवा बाजार में आ रही हैं और इसके सेवन के दुष्प्रभाव से युवाओं को कार्डियक अटैक जैसी जानलेवा बीमारी सामने आ रही है। एक समय इन्हीं वैश्विक कम्पनियों ने एड्स का जाल बिछाया था और एक बार बड़े पैमाने पर दवा बेचने के बाद इस बीमारी को स्थायी बना दिया। इस समय शुगर का प्रतिशत लगातार वैश्विक दबाव में घटाया जा रहा है और एक स्वस्थ्य व्यक्ति अकारण बीमारी की चपेट में आता जा रहा है। कोविड वैक्सिन के दुष्प्रभाव को लेकर हंगामा भी ऐसी ही किसी वैश्विक साजिश का हिस्सा जान पड़ती है। गौर करने लायक बात यह है कि यही वैक्सिन अन्य पीडि़त देशों में भी भारत ने सहायतार्थ भेजी थी लेकिन वहां ऐसा हंगामा नहीं हो रहा है। इस पर अध्ययन और मनन होना चाहिए।  


इधर सोशल मीडिया में सुनियोजित ढंग से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल तैयार करने की भरसक कोशिश की जा रही है। प्रतिपक्ष ऐसे आरोप लगाते हुए भूल जाता है कि यह हमला पीएम नरेंद्र मोदी पर नहीं, बल्कि देश की विश्वनीयता पर सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। एक रिसर्च में आया है कि कोविड वैक्सीन से दस लाख में एक व्यक्ति की मृत्यु संभावित है। यह रिसर्च इस बात का पुख्ता संकेत है कि वेक्सीन और मौतों का दुष्प्रभाव शून्य के स्तर पर है। भारत वह देश है जहां आज भी स्वच्छ जल पीने के लिए उपलब्ध नहीं है और ऐसे में अनेक बीमारियों का जन्म होता है। शताधिक मौतें भी अनन्य बीमारियों के चलते होती है। ऐसी बीमारी और मौतों पर कोई हंगामा नहीं होता है।


सोशल मीडिया जहां कम्युनिकेशन का बड़ा हिस्सा है, वहीं अफवाहों को बल देने में इसका भरपूर उपयोग होता है। एक लोककथा का सोशल मीडिया के संदर्भ में स्मरण हो आता है कि एक किसान का बैल बीमार हो गया और वह भागा-भागा गांव के पटेल के पास गया और पूछा कि आपने अपने बीमार बैल के लिए क्या उपाय किया था? पटेल ने कहा कि एक बाल्टी पानी में सर्फ घोल कर पिला दिया। किसान ने वैसा ही किया लेकिन उसका बैल मर गया। अपनी शिकायत लेकर वह पटेल के पास पहुंचा और जानना चाहा कि उसके बैल का क्या हुआ था? पटेल ने सपाट शब्दों में कहा कि मेरा बैल भी मर गया था। किसान ने पटेल से कहा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया? इस पर पटेल ने कहा कि तुमने मुझसे इलाज पूछा था, इलाज के बाद परिणाम नहीं। आज सोशल मीडिया का यही हाल है, वह उपाय तो जानना चाहता है लेकिन परिणाम के बारे में जाने बिना वह इलाज के लिए निकल पड़ता है।


यह समय बेहद सावधानी का है। कोविड को भी वैश्विक बाजार ने स्थायी बीमारी बता दिया है और अपने लिए बाजार तैयार कर लिया है। वैक्सिन किस वैश्विक कंपनी की बिकेगी, यह भी तय कर लिया जाता है और इस रणनीति के अनुरूप भय और विवाद की जमीन तैयार की जाती है। वैक्सिन कितना खतरनाक है या नहीं है, इस का परिणाम इसके विशेषज्ञ तय करेंगे, लेकिन राजनैतिक दल के नेता चुनावी लाभ लेने जनमानस में डर का माहौल बना रहे हैं, वह कोविड से भी ज्यादा डरावना है। इसलिए सर्तक रहिए, स्वस्थ्य रहिए।


लेखक-

सुधीर कसार

(इस्पात मंत्रालय भारत सरकार के हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य हैं)

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